खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग
साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन
अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस
खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय
खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन
कूच नगारा सांस का, बाजत ै दिन रैन
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग
रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन
आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ
न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दू
खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग।।
खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।
खीर पकायी जतन से, चरखा दिया जला।
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा।।
गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस।।
अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।।
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।।
साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन।
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।।
खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन।
कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन।।
संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जाऐंगे, जैसे रणरेही का खेत।।
खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।।
तूती-ए-हिंद अमीर खुसरो के दोहे – अमीर खुसरो की लोकप्रिय अवधी कविता Satatus
अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई।
जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।।
रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।।
रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।
नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय।।
उज्जवल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।।
खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय।
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।
चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।।
देख मैं अपने हाल को रोऊं, ज़ार-ओ-ज़ार।
वै गुनवन्ता बहुत है, हम हैं औगुन हार।।
वो गए बालम वो गए नदिया पार।
आपे पार उतर गए, हम तो रहे मझधार।।
तूती-ए-हिंद अमीर खुसरो के दोहे – अमीर खुसरो की लोकप्रिय अवधी कविता Satatus
Tooti-e-Hind Amir Khusro ke dohe – अमीर खुसरो की लोकप्रिय अवधी कविता Satatus
Tooti-e-Hind Amir Khusro ke dohe – अमीर खुसरो की लोकप्रिय अवधी कविता Satatus
अमीर ख़ुसरो की रचनाएँ उनकी गहरी संवेदनाओं, प्रेम, और सूफी विचारधारा को व्यक्त करती हैं। यहाँ कुछ प्रमुख रचनाओं का उल्लेख किया गया है:
गज़लें
ख़ुसरो की गज़लें उनकी प्रेम भावनाओं और जीवन के गहरे अनुभवों को दर्शाती हैं। उनकी गज़लें फ़ारसी और हिंदी में हैं और आज भी बहुत प्रिय हैं।
कव्वाली
अमीर ख़ुसरो को कव्वाली का जनक माना जाता है। उनकी कव्वालियाँ, जैसे “चाप ता जुदाई” और “मेरा लाला” आज भी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं।
“दीवाने अमीर ख़ुसरो”
यह उनकी एक प्रमुख रचना है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन, प्रेम और सूफीवाद के विचारों को व्यक्त किया है।
“ख़लील उज़ जिया”
यह रचना ख़ुसरो के विचारों और अनुभवों का समागम है। इसमें उन्होंने प्रेम और आध्यात्मिकता को बहुत गहराई से छुआ है।
राग रचना
ख़ुसरो ने कई रागं का विकास किया, जैसे “राग भैरव” और “राग यमन”। उनका संगीत आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत में महत्वपूर्ण है।
“तुग़लक़नामा”
यह उनकी एक प्रसिद्ध काव्य रचना है, जो तुग़लक़ वंश की प्रशंसा में लिखी गई है।
“सुखन-ए-ख़ुसरो”
इसमें उनकी कविताएँ और शायरी शामिल हैं, जो उनकी साहित्यिक क्षमता का प्रमाण देती हैं।
इन रचनाओं के माध्यम से, अमीर ख़ुसरो ने न केवल साहित्य और संगीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि भारतीय संस्कृति को भी समृद्ध किया। उनके विचार और कला आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।
Tooti-e-Hind Amir Khusro ke dohe – अमीर खुसरो की लोकप्रिय अवधी कविता Satatus
Tooti-e-Hind Amir Khusro ke dohe – अमीर खुसरो की लोकप्रिय अवधी कविता Satatus
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