गुज़र जायेगा ये दौर भी ज़रा सब्र तो रख !
जब खुशियाँ ही न रुकी तो ग़म की क्या औकात है !!
आँसुओ का कोई वज़न नहीं होता,
लेकिन निकल जाने पर मन हल्का हो जाता है
लोग कहते हैं दु:ख बुरा होता है जब भी आता है रुलाकर जाता है
लेकिन हम कहते दु:ख अच्छा होता है जब भी आता है कुछ सिखा कर जाता है !!
ज़िन्दगी की हक़ीक़त को बस इतना ही जाना है , दर्द में अकेले हैं खुशियों में ज़माना है
नाज़ुक लगते थे जो लोग, वास्ता पड़ा तो पत्थर के निकले
मेरे ग़म का छोटा सा हिस्सा लेकर तो देखो ,
मरने की ख्वाहिश न करने लगे तो कहना
दर्द मुझको ढूंढ़ लेता है रोज़ नए बहाने से
वो हो गया वाक़िफ़ मेरे हर ठिकाने से
अपनी पीठ से निकले खंजरों को जब गिना मैंने,
ठीक उतने ही निकले जितनो को गले लगाया था मैंने
परख से परे है
ये शख़्सियत मेरी
मैं उन्हीं के लिए हूँ,
जो समझें कदर मेरी
किसी को उजाड़ कर बसे तो क्या बसे
किसी को रुलाकर हँसे तो क्या हँसे
जिन्हें नींद नहीं आती
उन्हें को मालूम है
सुबह आने में
कितने ज़माने लगते हैं
सोचा था बताएंगे हर एक दर्द तुमको लेकिन,
तुमने तो इतना भी न पूँछा की खामोश क्यों हो!
मुझे गिरे हुए पत्तों ने सिखाया है,
बोझ बन जाओगे तो अपने भी गिरा देंगे!
क़दर तो वो होती है जो किसी की मौजूदगी में हो,
जो किसी के बाद हो उसे पछतावा कहते है!
ख्वाब बोये थे और अकेलापन काटा है,
इस मोहब्बत में यारों बहुत घाटा है!
मैं जो हूँ मुझे रहने दे हवा के जैसे बहने दे,
तन्हा सा मुसाफिर हूँ मुझे तन्हा ही तू रहने दे!