Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

गुलज़ार,  एक प्रसिद्ध भारतीय शायर, गीतकार, लेखक और फ़िल्म निर्माता हैं। उनका जन्म 18 अगस्त 1934 को दिया नाथ, पंजाब में हुआ था। उन्हों

ने हिंदी और उर्दू कविता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, और उनकी शायरी में गहरी भावनाएँ और जीवन के अनुभवों की सच्चाई होती है।

गुलज़ार ने कई फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं और उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं। उनकी शायरी में प्रेम, दर्द, और मानवीय अनुभवों की गहराई झलकती है।

 

Gulzar Shahab ki Shayari - गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

 

“गुलज़ार साहब: क़लम से निकली दिलकश शायरी”

हम समझदार भी इतने हैं के
उनका झूठ पकड़ लेते हैं
और उनके दीवाने भी इतने के फिर भी
यकीन कर लेते है

 

दौलत नहीं शोहरत नहीं,न वाह चाहिए
“कैसे हो?” बस दो लफ़्जों की परवाह चाहिए

 

कभी जिंदगी एक पल में गुजर जाती है
कभी जिंदगी का एक पल नहीं गुजरता

 

जब से तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ से लगाई है
मीठा सा गम मीठी सी तन्हाई है।

 

मेरी कोई खता तो साबित कर
जो बुरा हूं तो बुरा साबित कर
तुम्हें चाहा है कितना तू क्या जाने
चल मैं बेवफा ही सही
तू अपनी वफ़ा साबित कर।

 

पलक से पानी गिरा है, तो उसको गिरने दो,
कोई पुरानी तमन्ना, पिंघल रही होगी।

 

आदतन तुम ने कर दिए वादे,
आदतन हमने ऐतबार किया।
तेरी राहो में बारहा रुक कर,
हम ने अपना ही इंतज़ार किया।।
अब ना मांगेंगे जिंदगी या रब,
ये गुनाह हमने एक बार किया।।।

 

मैंने मौत को देखा तो नहीं,
पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी।
कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं,
जीना ही छोड़ देता हैं।।

 

टूट जाना चाहता हूँ, बिखर जाना चाहता हूँ,
में फिर से निखर जाना चाहता हूँ।
मानता हूँ मुश्किल हैं,
लेकिन में गुलज़ार होना चाहता हूँ।।

 

सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की,
मुस्कुराए भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर,
कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया।।

 

Gulzar Shahab ki Shayari - गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

 

किसने रास्ते मे चांद रखा था,
मुझको ठोकर लगी कैसे।
वक़्त पे पांव कब रखा हमने,
ज़िंदगी मुंह के बल गिरी कैसे।।
आंख तो भर आयी थी पानी से,
तेरी तस्वीर जल गयी कैसे।।

 

दर्द हल्का है साँस भारी है,
जिए जाने की रस्म जारी है।

 

उधड़ी सी किसी फिल्म का एक सीन थी बारिश,
इस बार मिली मुझसे तो गमगीन थी बारिश।
कुछ लोगों ने रंग लूट लिए शहर में इस के,
जंगल से जो निकली थी वो रंगीन थी बारिश।।

 

देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हम को पुकारता है कोई।
हवा गुज़र गयी पत्ते थे कुछ हिले भी नहीं,
वो मेरे शहर में आये भी और मिले भी नहीं।।

 

बीच आसमां में था बात करते- करते ही,
चांद इस तरह बुझा जैसे फूंक से दिया,
देखो तुम इतनी लम्बी सांस मत लिया करो।।

 

वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी,
हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते..
वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी

 

यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता

 

बेशूमार मोहब्बत होगी उस बारिश  की बूँद को इस ज़मीन से,
यूँ ही नहीं कोई मोहब्बत मे इतना गिर जाता है!

 

आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है

कुछ अलग करना हो तो

भीड़ से हट के चलिए,
भीड़ साहस तो देती हैं
मगर पहचान छिन लेती हैं

 

अच्छी किताबें और अच्छे लोग
तुरंत समझ में नहीं आते हैं,
उन्हें पढना पड़ता हैं

 

Gulzar Shahab ki Shayari - गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

 

इतना क्यों सिखाए जा रही हो जिंदगी
हमें कौन से सदिया गुजारनी है यहां

 

थोड़ा सा रफू करके देखिए ना
फिर से नई सी लगेगी
जिंदगी ही तो है

 

मैं वो क्यों बनु जो तुम्हें चाहिए
तुम्हें वो कबूल क्यों नहीं
जो मैं हूं

 

बहुत छाले हैं उसके पैरों में
कमबख्त उसूलों पर चला होगा

 

सुनो…
जब कभी देख लुं तुमको
तो मुझे महसूस होता है कि
दुनिया खूबसूरत है

 

मैं दिया हूँ
मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से हैं
हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ हैं

 

बहुत अंदर तक जला देती हैं,
वो शिकायते जो बया नहीं होती

 

एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने के बाद
दूसरा सपना देखने के हौसले का नाम जिंदगी हैं

 

तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी,
जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं

 

Gulzar Shahab ki Shayari - गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

 

घर में अपनों से उतना ही रूठो
कि आपकी बात और दूसरों की इज्जत,
दोनों बरक़रार रह सके

 

लोग कहते है की
खुश रहो
मगर मजाल है
की रहने दे

 

देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई.
कल का हर वाक़िया था  तुम्हारा,
आज की दास्ताँ है हमारी

 

अपने साये से चौंक जाते हैं,
उम्र गुजरी है इस क़दर तनहा.

 

गए थे सोचकर की बात
बचपन की होगी
मगर दोस्त मुझे अपनी
तरक्की सुनाने लगे

 

दिल के रिश्ते ‍‍‍ हमेशा किस्मत से ही बनते है,
वरना मुलाकात तो रोज हजारों 1000 से होती है

 

वह जो सूरत पर सबकी हंसते है,
उनको तोहफे में एक आईना दीजिए

 

बहुत मुश्किल से करता हूं
तेरी यादों का कारोबार मुनाफा कम है
पर गुज़ारा हो ही जाता है

 

यूं तो ऐ जिंदगी तेरे सफर से
शिकायते बहुत थी
मगर दर्द जब दर्ज करने पहुंचे
तो कतारें बहुत थी

 

जिंदगी ये तेरी खरोंचे है मुझ पर
या फिर तू मुझे तराशने की कोशिश में है…

 

तस्वीरें लेना भी जरूरी है जिंदगी में साहब
आईने गुजरा हुआ वक्त नहीं बताया करते

 

Gulzar Shahab ki Shayari - गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

खुदकुशी हराम है साहब,
मेरी मानो तो इश्क़ कर लो

 

सलीका अदब का तो बरकरार रखिए जनाब,
रंजिशे अपनी जगह है सलाम अपनी जगह।।

 

इतने बेवफा नहीं है की तुम्हें भूल जाएंगे,
अक्सर चुप रहने वाले प्यार बहुत करते हैं।।

 

तुम्हारा साथ तसल्ली से चाहिए मुझे ,
जन्मों की थकान लम्हों में कहाँ उतरती है।।

 

मेरी किस्मत में नहीं था तमाशा करना,
बहुत कुछ जानते थे मगर ख़ामोश रहे।।

 

मुहब्बत लिबास नहीं जो हर रोज बदल जाए
मोहब्बत कफन है जो पहन कर उतारा नहीं जाता

 

इतनी सी ज़िन्दगी है पर ख्वाब बहुत है

जुर्म तो पता नहीं साहब पर इल्जाम बहुत है।।

 

नहीं करता मैं तेरी ज़िक्र किसी तीसरे से
तेरे बारे में बात सिर्फ़ ख़ुदा से होती है ।।

 

जो चाहे हो जाए वह दर्द कैसा और
जो दर्द को महसूस ना कर सके वो हमदर्द कैसा

 

उसने एक ही बार कहा दोस्त हूं
फिर मैंने कभी नहीं कहा व्यस्त हूं।।

 

एक ना एक दिन हासिल कर ही लूंगा मंजिल..
ठोकरें ज़हर तो नहीं जो खा कर मर जाऊंगा।

Gulzar Shahab ki Shayari - गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

 

 

शाम से आँख में नमी सी है, आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें के साँस मिले, नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है

 

कभी तो चौक के देखे कोई हमारी तरफ़,
किसी की आँखों में हमको भी को इंतजार दिखे।

 

बेहिसाब हसरते ना पालिये,
जो मिला हैं उसे सम्भालिये।

 

रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो,
दिन की चादर अभी उतारी है।

 

रोई है किसी छत पे, अकेले ही में घुटकर,
उतरी जो लबों पर तो वो नमकीन थी बारिश।

 

तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई
शिकवा तो नहीं
तेरे बिना पर ज़िन्दगी भी लेकिन
ज़िन्दगी तो नहीं

 

मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता,
हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है।

 

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,

आदत इस की भी आदमी सी है।

 

बचपन में भरी दुपहरी में नाप आते थे पूरा मोहल्ला,
जब से डिग्रियां समझ में आयी पांव जलने लगे हैं।

 

उम्र जाया कर दी लोगो ने
औरों में नुक्स निकालते निकालते
इतना खुद को तराशा होता
तो फरिश्ते बन जाते

 

 जिंदगी पर गुलज़ार की शायरी 2 लाइन में

 

मैंने दबी आवाज़ में पूछा? मुहब्बत करने लगी हो?
नज़रें झुका कर वो बोली! बहुत।

 

उसने कागज की कई कश्तिया पानी उतारी और,
ये कह के बहा दी कि समन्दर में मिलेंगे।

 

तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी,
जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं।

 

एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है,
मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की।

 

हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं नहीं छोड़ा करते,
वक्त की शाख से लम्हें नहीं तोडा करते।

 

तन्हाई की दीवारों पर घुटन का पर्दा झूल रहा हैं,
बेबसी की छत के नीचे, कोई किसी को भूल रहा हैं।

 

कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था,
आज की दास्ताँ हमारी है।

 

एक सो सोलह चाँद की रातें ,
एक तुम्हारे कंधे का तिल।
गीली मेहँदी की खुश्बू झूठ मूठ के वादे,
सब याद करादो, सब भिजवा दो,
मेरा वो सामान लौटा दो।।

 

मैंने मौत को देखा तो नहीं,
पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी।
कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं,
जीना ही छोड़ देता हैं।।

 

लकीरें हैं तो रहने दो,
किसी ने रूठ कर गुस्से में शायद खींच दी थी,
उन्ही को अब बनाओ पाला, और आओ कबड्डी खेलते हैं।।

 

“एक बार तो यूँ होगा, थोड़ा सा सुकून होगा,
ना दिल में कसक होगी, ना सर में जूनून होगा।”

 

ज़रा ये धुप ढल जाए ,तो हाल पूछेंगे ,
यहाँ कुछ साये , खुद को खुदा बताते हैं।

 

तेरे जाने  से तो कुछ बदला नहीं, रात भी आयी थी और चाँद भी था , हाँ मगर नींद नहीं।

 

सेहमा सेहमा डरा सा रहता है
जाने क्यों जी भरा सा रहता है।

 

चांदी उगने लगी है बालों में ,  के उम्र तुम पर हसीन लगती है !

 

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक्त की शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते

 

ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं
ये एक दूजे को दिन भर पकड़ते रहते हैं

 

ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में

 

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा,
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा।

 

खाली कागज़ पे क्या तलाश करते हो?
एक ख़ामोश-सा जवाब तो है।

 

ज़िन्दगी सूखी हुई नहीं बस थोड़ी सी प्यासी है, इसमें रस लाना है तो दरियादिल बन कर तो देखो।

 

ज़िन्दगी का हर पल कुछ ऐसा रहे की मर कर भी अमर रहे।

 

थक कर बहुत सो चुके हो अब हर दिन हँस कर जागना शुरू कर दो।

 

ज़िन्दगी गुलज़ार है इसलिए यहाँ ग़मों को बांटना बेकार है।

 

ज़िन्दगी और जुबां तब तक शांत रहती जब तक सब कुछ बेहतर रहता है।

 

परायों से जीतने में इतनी ख़ुशी नहीं मिलती जितनी कभी-कभी अपनों से हार कर मिल जाती है।

 

ज्यादा वो नहीं जीता जो ज्यादा सालों तक ज़िंदा रहता है, बल्कि ज़्यादा वो जीता है जो ख़ुशी से जीता है।

 

दूर से सबको दूसरों की ज़िन्दगी अच्छी लगती है पर अगर सब नज़दीक से अपनी ज़िन्दगी देखेंगे तो सबको अपनी ज़िन्दगी अच्छी लगने लगेगी।

 

शायर बनना बहुत आसान हैं,
बस एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल डिग्री चाहिए।

 

गुलजार की दर्द भरी शायरियां

 

एक  सुकून सा मिलता है तुझे सोचने से भी,
फिर कैसे कह दूँ मेरा इश्क़ बेवजह सा है ।।

 

अजीब सी दुनिया है यह साहब,
यहां लोग मिलते कम एक दूसरे में झांकते ज्यादा है।।

 

जिसे पा नहीं सकते जरूरी नहीं ,
कि उसे प्यार करना भी छोड़ दिया जाए।।

 

तेरे बगैर किसी और को देखा नहीं मैंने,
सूख गया वो तेरा गुलाब लेकिन फेंका नहीं मैंने।।

 

पहले लगता था तुम ही दुनिया हो,
अब लगता है तुम भी दुनिया हो।।

 

तो कभी हुआ नहीं,
गले भी लगे और छुआ नहीं।।

 

जरा ठहरो तो नजर भर देखु,
ज़मीं पे  चांद कहां रोज-रोज उतरता है।।

 

आंसू बहाने से कोई अपना नहीं होता ,
जो अपना होता है वो रोने ही कहां देता है।।

 

एक बार फिर इश्क़ करेंगे हम,
अभी सिर्फ भरोसा उठा है जनाजा नहीं।।

 

मुझे खौफ कहां  मौत का,
मैं तो जिंदगी से डर गया हूं।।

 

दोस्ती और मोहब्बत में फर्क सिर्फ इतना है बरसों बाद मिलने पर मोहब्बत नजर चुरा लेती और दोस्ती सीने से लगा लेती है

 

कोई पुछ रहा हैं मुझसे मेरी जिंदगी की कीमत,
मुझे याद आ रहा है तेरा हल्के से मुस्कुराना।

 

तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं,
रात भी आयी और चाँद भी था, मगर नींद नहीं।

 

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उनको,
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया?

 

सुना हैं काफी पढ़ लिख गए हो तुम,
कभी वो भी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते हैं।

बदल जाओ वक़्त के साथ या वक़्त बदलना सीखो,
मजबूरियों को मत कोसो, हर हाल में चलना सीखो!

Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

गुलज़ार: एक अनूठी साहित्यिक यात्रा

गुलज़ार, जिनका असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है, भारतीय साहित्य और सिनेमा के एक अनमोल रत्न हैं। 18 अगस्त 1934 को पंजाब के दिया नाथ में जन्मे गुलज़ार ने अपनी शायरी और गीत लेखन से एक नई पहचान बनाई। उनके शब्दों में गहराई, संवेदनशीलता और खूबसूरती है, जो पाठकों और श्रोताओं के दिलों को छू जाती है।

साहित्यिक यात्रा

गुलज़ार की साहित्यिक यात्रा की शुरुआत 1960 के दशक में हुई, जब उन्होंने शायरी और निबंध लेखन के साथ अपने करियर की शुरुआत की। उनकी शायरी में रोजमर्रा की ज़िंदगी के अनुभवों को खूबसूरती से बयां किया गया है। गुलज़ार की रचनाओं में प्रेम, विरह, और मानवीय भावनाएँ प्रमुखता से दिखाई देती हैं।

सिनेमा में योगदान

गुलज़ार ने हिंदी सिनेमा के लिए कई यादगार गीत लिखे हैं। उनकी पहली फिल्म “बूंदि” थी, लेकिन “गुड्डी”, “ख़ामोशी”, “मौसम” और “आंधी” जैसी फिल्मों में उनके गीतों ने उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया। उनके गीतों में शुद्ध भावनाएँ और सामाजिक मुद्दों का संवेदनशील चित्रण मिलता है।

विशेषताएँ

  1. सादगी और गहराई: गुलज़ार की शायरी में एक अद्भुत सादगी है, जो उन्हें आम लोगों से जोड़ती है। उनकी शब्दावली में गहराई होती है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है।
  2. प्रकृति प्रेम: उनके लेखन में प्रकृति का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। गुलज़ार अक्सर अपने गीतों और कविताओं में प्राकृतिक दृश्यों का सुंदर चित्रण करते हैं।
  3. कथानक की विशेषता: उनकी शायरी में कहानी कहने की कला अद्भुत है। हर कविता एक छोटी कहानी की तरह होती है, जिसमें भावनाओं का एक समृद्ध ताना-बाना बुना होता है।

पुरस्कार और सम्मान

गुलज़ार को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, और दादा साहब फाल्के पुरस्कार शामिल हैं। 2004 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा “पद्म भूषण” से भी सम्मानित किया गया।

निष्कर्ष

गुलज़ार की शायरी और गीत आज भी लोगों के दिलों में गूंजते हैं। उनकी रचनाएँ न केवल भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, बल्कि वे मानवता के लिए एक प्रेरणा भी हैं। गुलज़ार का लेखन हमें यह सिखाता है कि कैसे एक साधारण पल को भी गहराई से जीया जा सकता है। उनकी आवाज़ और शब्दों की मिठास हमेशा हमारे साथ रहेगी।

गुलज़ार की कला में एक जादुई शक्ति है, जो हर पीढ़ी को छूती है, और उनके शब्दों के साथ हम हमेशा जुड़े रहेंगे।

Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

gulzar shayari,gulzar ki shayari,gulzar sahab ki shayari,gulzar shayari on love,gulzar shayari in hindi,gulzar shayari status,shayari,gulzar hindi shayari collection,gulzar poetry,gulzar,hindi shayari,love shayari,best gulzar shayari,guljar shayari,gulzar poetry in hindi,guljar shayari in hindi,gulzar sahab shayari,shayari gulzar sahab,gulzar sahab sad shayari,gulzar sahab best shayari,gulzar sahab attitude shayari,attitude shayari gulzar sahab

Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

Gulzar Shahab ki Shayari – गुलज़ार साहब की कुछ सदाबहार शायरियां

 

You might like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *